Namaz Chodne Par Azaab » नमाज़ छोड़ने पर अज़ाब

 Namaz Chodne Par Azaab » नमाज़ छोड़ने पर अज़ाब

नमाज़ छोड़ने पर अज़ाब

तर्के नमाज़ पर वईदें


जहन्नमियों के मुतअल्लिक़ खबर देते हुए अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि उन से जहन्नम में यह पूछा जाएगा "तुम को जहन्नम में क्या चीज़ ले गई" वह कहेंगे कि हम नमाज़ पढ़ने वालों में से न थे और न मिस्कीनों को खाना खिलाने वालों में से थे बल्कि बहस करने वालों के साथ बहस किया करते थे।


जनाबे अहमद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि आदमी और कुफ्र के दर्मियान फ़र्क नमाज़ का छोड़ देना है।


नमाज़ की फ़ज़ीलत


सिहाहे सित्ता की चन्द हदीसें


मुस्लिम की रिवायत है कि आदमी और शिर्क या कुफ्र के दर्मियान फ़र्क नमाज़ का छोड़ देना है।


अबू दाऊद और नसई की रिवायत है कि बन्दे और कुफ्र के दर्मियान नमाज़ छोड़ देने के सिवा और कोई फर्क नहीं।


तिर्मिज़ी की रिवायत है कि कुफ्र और ईमान के दर्मियान फ़र्क नमाज़ का छोड़ना है।


इब्ने माजा की रिवायत है कि बन्दे और कुफ्र के दर्मियान फ़र्क नमाज़ का छोड़ देना है।


तिर्मिज़ी वगैरह की रिवायत है, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि हमारे और उनके दर्मियान फ़र्क नमाज़ का है । जिस ने नमाज़ छोड़ दी उस ने काफ़िरों जैसा काम किया।


तबरानी की रिवायत है कि जिस ने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दी उस ने खुल्लम खुल्ला काफिरों जैसा काम किया।


एक रिवायत में है कि बन्दे और शिर्क या कुफ्र के दर्मियान फर्क नमाज़ का छोड़ना है, जब उस ने नमाज़ छोड़ दी तो काफिरों जैसा काम किया।


दूसरी रिवायत में है कि बन्दे और शिर्क या कुफ्र के दर्मियान नमाज़ छोड़ने के सिवा और कोई फर्क नहीं है । जिस ने नमाज़ छोड़ दी उस ने मुशरिकों जैसा काम किया।


एक और रिवायत में है कि उस ने इस्लाम को बरहना कर दिया और इस्लाम की तीन बुनियादें हैं, जिन पर इस्लाम की इमारत काइम है, जिस ने उन में से एक को छोड़ दिया वह काफ़िर है और उस का क़त्ल कर देना हलाल है । कलमए शहादत पढ़ना


यानी अल्लाह तआला की वहदानियत की गवाही देना, फर्ज नमाज़ अदा करना और माहे रमज़ान के रोज़े रखना।


दूसरी रिवायत जिस कोअस्नादे हसन के साथ नक्ल किया गया है,यह है कि जिस ने उन में से किसी एक को छोड़ दिया वह अल्लाह तआला का मुन्किर है। उस से कोई हीला और बदला कबूल नहीं किया जाएगा और उस का खून और माल लोगों के लिए हलाल है।


तबरानी वगैरह में वह बतरीके हसन मरवी है, हज़रते उबादा बिन सामित रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा है कि मुझे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सात बातों की वसीयत फरमाई, किसी को अल्लाह तआला के साथ शरीक न ठहराओ चाहे तुम्हें टुकड़े-टुकड़े कर दिया जाये या जला दिया जाये-या फाँसी पर लटका दिया जाये, जान बूझ कर नमाज़ न छोड़ो क्यों कि जिस ने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दी वह दीन से निकल गया, गुनाह और नाफरमानी न करो यह अल्लाह तआला के कहर के अस्बाब हैं और शराब न पियो क्यों कि यह गुनाहों का मम्बा (चश्मा) है ।(हदीस)


तिर्मिज़ी की रिवायत है कि हज़रते मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सहाबए किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम नमाज़ के छोड़ने के इलावा किसी और अमल के छोड़ने को कुफ्र नहीं समझते थे।


सही हदीस में है कि बन्दे और कुफ्र व ईमान के दर्मियान फ़र्क नमाज़ है । जब उस ने नमाज़ छोड़ दी तो गोया उस ने शिर्क किया।


बजाज़ की रिवायत है कि जो नमाज़ अदा नहीं करता है उस का इस्लाम में कोई हिस्सा नहीं है और जिस का वजू सही नहीं है उस की नमाज़ नहीं।


वुजू का तरीका


तबरानी की रिवायत है कि जिस शख्स में अमानत नहीं उसका ईमान नहीं जिसका वजू सही नहीं उस की नमाज़ नहीं और जिस ने नमाज़ नहीं पढ़ी उस का दीन नहीं रहा, जैसे जिस्म में सर का मकाम है उसी तरह दीन में नमाज़ का मकाम हैं।


इब्ने माजा और बैहकी में हज़रते अबू दरदा रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि मुझे मेरे हबीब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वसीयत फ़रमाई, अल्लाह तआला के साथ शिर्क न कर अगरचे तुझे काट दिया जाये और जला दिया जाये, फ़र्ज़ नमाज़ जान बूझ कर न छोड़ क्यों कि जिस ने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दी वह हमारे जिम्मा से निकल गया और शराब न पी क्यों कि यह हर बुराई की कुंजी है।


40 दिन की नमाज़ क़ुबूल ना होगी 


मुस्नद बजाज़ में हज़रते इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से मरवी है, आप ने फ़रमाया जब मेरी पुतलियों की सेहत के बावजूद मेरी बीनाई जाया हो गई तो मुझ से कहा गया कि आप कुछ नमाज़ छोड़ दें, हम आप का इलाज करते हैं, मैं ने कहा ऐसा नहीं होगा क्यों कि मैं ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुना है, आप ने फरमाया जिसने नमाज़ छोड़ दी वह अल्लाह तआला से इस हाल में मुलाकात करेगा कि अल्लाह तआला उस पर नाराज़ होगा।


तबरानी की एक रिवायत है, हुजूर सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम की ख़िदमत में एक शख्स ने हाज़िर होकर अर्ज़ की मुझे ऐसा अमल बताईये जिसे करके मैं जन्नत में जाऊँ। आप ने फरमाया अल्लाह तआला के साथ शिर्क न कर अगरचे तुझे अज़ाब दिया जाये और जिन्दा जला दिया जाये, वालिदैन का फरमाँ बरदार बन, अगरचे वह तुझे तेरे तमाम माल व अस्बाब से बे दखल कर दें और जान बूझ कर नमाज़ न छोड़ क्यों कि जिस ने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दी वह अल्लाह तआला के जिम्मा से निकल गया।


एक और रिवायत में है अल्लाह तआला के साथ शिर्क न कर अगरचे तुझें कत्ल कर दिया जाये और जला दिया जाये, वालिदैन की नाफरमानी कर अगरचे वह तुझे तेरे बाल व बच्चे और माल से निकाल दें, फर्ज नमाज़ को जान बूझ कर न छोड़ क्यों कि जिस ने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दी वह अल्लाह तआला के जिम्मा से निकल गया। शराब कभी न पी क्यों कि उस का पीना हर बुराई की जड़ है। खुद को नाफरमानियों से बचा क्यों कि उनसे अल्लाह तआला नाराज़ हो जाता है ।अपने आप को जंग के दिन भगोड़ा बनने से बचा अगरचे लोग हलाक हो जायें और लोग मर जायें मगर तू साबित कदम रह, अपनी ताकत के मुताबिक अपने अहल व अयाल पर खर्च कर, उन की तादीब से कभी गाफ़िल न हो और उन्हें ख़ौफ़े खुदा दिलाता रह । .


सही इबने हिब्बान में रिवायत है कि बादल वाले दिन नमाज़ जल्दी पढ़ लिया करो क्यों कि जिस ने नमाज़ छोड़ दी उस ने कुफ्र किया।


तबरानी में हुजूर सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम की कनीज़ हज़रते उमैमा रज़ियल्लाहु अन्हा से मरवी है कि मैं एक मर्तबा हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सर पर पानी डाल रही थी एक शख्स ने आकर कहा मुझे वसीयत फ़रमाई जाये । हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अल्लाह तआला के साथ किसी को शरीक न बना अगर तुझे काट दिया जाये और जला दिया जाये । वालिदैन की नाफरमानी न कर अगरचे वह तुझे तेरे घर और माल व दौलत के छोड़ने को कहें तो सब कुछ छोड़ दे, शराब कभी न पी क्यों कि यह हर बुराई की कुंजी है और फ़र्ज़ नमाज़ कभी भी जान बूझ कर न छोड़ क्यों कि जिसने ऐसा किया वह अल्लाह और उस के रसूल के ज़िम्मा से निकल गया।


अबू नईम की रिवायत है कि जिस शख्स ने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दी अल्लाह तआला उस का नाम जहन्नम के उस दरवाजे पर लिख देता है जिस में से उसे दाखिल होना होता है।


तबरानी और बैहकी कि रिवायत है कि जिस ने नामज छोड़ दी गोया उस का माल व अहल व अयाल (सब कुछ) ख़त्म हो गया ।


हाकिम ने हज़रते अली रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत की है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ऐ गिरोहे कुरैश! तुम नमाज़ ज़रूर अदा करो और ज़कात अदा करो, नहीं तो अल्लाह तआला तुम्हारी तरफ़ ऐसे शख्स को भेजेगा जो दीन के लिए तुम्हारी गरदनें उड़ा देगा।


बज़ाज़ की रिवायत है कि जो शख्स नमाज़ अदा नहीं करता उस का दीन में कोई हिस्सा नहीं और जिस का वजू सही नहीं उस की नमाज़ सही नहीं।


मुस्नदे अहमद की एक मुरसल रिवायत है कि अल्लाह तआला ने इस्लाम में चार चीजें फ़र्ज की हैं, जो शख़्स उन में से तीन को पूरा करता है मगर एक को छोड़ देता है उसे अजाब से कोई चीज़ नहीं बचाएगी, यहाँ तक कि वह चारों पर अमल करे, नमाज़, जकात, रोज़ा और हज


अस्बहानी की रिवायत है कि जिसने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दी अल्लाह तआला. उसके आमाल को बरबाद कर देता है और उसे अपने जिम्मा से निकाल देता है यहाँ तक कि वह अल्लाह की बारगाह में तौबा करे।


तबरानी की रिवायत है कि जिस ने नमाज़ छोड़ दी उस ने खुल्लम खुल्ला कुफ्र किया।


मुस्नदे अहमद में रिवायत है कि जान बूझ कर नामज़ को न छोड़ो क्यों कि जिस ने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दी उस से अल्लाह और उस के रसूल का जिम्मा खत्म हो गया । इब्ने अबी शैबा और तारीखुल बुख़ारी में हज़रते अली रज़ियल्लाहु अन्हु पर मौ. कूफ़ रिवायत है, जिस ने नमाज़ न पढ़ी वह काफ़िर है ।


मुहम्मद बिन नस्र और इब्ने अब्दुल बर रहमहुमल्लाहु तआला अपनी मसानीद में हज़रते इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से मौकूफ़ रिवायत करते हैं कि जिस ने नमाज़ छोड़ दी उस ने कुफ्र किया।


इब्ने नस्र रहमतुल्लाह अलैह ने इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत की है कि जिसने नमाज़ छोड़ दी उस का दीन नहीं है।


इब्ने अब्दुल बर ने हज़रते जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु से मौक़फ रिवायत की है कि जिस ने नमाज़ नहीं पढ़ी वह काफिर है।


एक और रिवायत में है जो अबू दरदा रज़ियल्लाहु अन्हु पर मौकूफ है कि जो नमाज अदा नहीं करता उस का ईमान नहीं है और जिस का बुजू नहीं उस की नमाज नहीं । इब्ने अबी शैबा की रिवायत है हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जिस ने नमाज़ छोड़ दी उस ने कुफ्र किया।


मुहम्मद बिन नस्र रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि मैंने इसहाक से सुना, वह कहते थे हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से यह हदीसे सही साबित है कि आपने फरमाया नमाज़ छोड़ने वाला काफिर है।


हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुकद्दस ज़माना से लेकर आज तक तमाम आलिमों की यह राय है कि नमाज़ छोड़ने वाला जो बगैर किसी शरई उज़र के नमाज़ नहीं पढ़ता यहाँ तक कि नमाज़ का वक़्त निकल जाता है तो वह काफिर है।


जनाबे अय्यूब रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि नमाज़ का छोड़ना कुफ्र है जिस में किसी को इख्तिलाफ नहीं है,


फरमाने इलाही है


पस उन के बाद बुरे लोग जाँनशीन हुए जिन्हों ने नमाजों को जाया किया और ख्वाहिशाते नफ़्सानी की पैरवी की पस जल्द ही वह गय्य में जायेंगे मगर जिस ने तौबा की (वह महफूज़ रहेगा)


हज़रते इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि ज़ाया करने का यह माना नहीं कि बिल्कुल नमाज़ पढ़ते ही नहीं बल्कि यह कि उसे मुअख्खर करके पढ़ते हैं।


ज़याअ नमाज़ का क्या माना है?


इमामुत्ताबेईन हज़रने सईद बिन मुसैइब रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि इस आयत में ज़याअ से यह मुराद है कि जुहर की अस्र के वक्त और अस्र की मगरिब के वक्त और मगरिब की इशा के वक्त और इशा की फज्र के वक्त और फज्र की सूरज • के निकल ने के वक्त के करीब पढ़ी जाये, जो शख्स इस तरीका से नमाजें पढ़ता हो मर जाये और उस ने तौबा न की तो अल्लाह तआला ने उस के लिए “गय्य" का वादा फ़रमाया है जो जहन्नम की एक गहरी और अज़ाब से भर पूर वादी है।


फ़रमाने इलााही है


ऐ ईमान वालो! तुम्हें तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद अल्लाह के ज़िक्र से गाफिल न करे और जिस ने ऐसा किया पस वह लोग खसारा पाने वाले हैं।


मुफस्सिरीन की एक जमाअत का कौल है यहाँ जिक्र से मुराद नमाजें हैं लिहाज़ा जो शख्स नमाज़ के वक्त अपने माल की वजह से जैसे उसकी खरीद व फरोख्त वगैरह में मशगूल होकर नमाज़ से गाफ़िल हो गया या अपनी औलाद में मशगूल होकर नमाज़ भूल गया वह नुकसान पाने वालों में से है। इसी लिए हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान है कि कियामत के दिन इंसान के सब आमाल से पहले नमाज़ का हिसाब होगा, अगर उस की नमाजें मुकम्मल हुईं तो वह फलाह व कामरानी पा गया और अगर उस की नमाजें कम हो गईं तो वह ख़ाइब व ख़ासिर (घाटे में) है |


और फरमाने इलाही है


पस वैल है उन नमाजियों के लिए जो अपनी नमाज़ों से बेख़बर हैं। हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया यह वह लोग हैं जो नमाज़ों को उन के वक्तों से देर कर के पढ़ते हैं।


मुस्नदे अहमद की ब-सनदे सही, तबरानी और सही इब्ने हिब्बान की रिवायत है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक दिन नमाज़ का तज़्किरा फ़रमाया और फ़रमाया जिस ने इन नमाज़ों को पाबन्दी से अदा किया, वह नमाज़ उस शख्स के लिए कियामत के दिन उसके लिए नूर, हुज्जत और नजात होगी और जिस शख्स ने नमाज़ों को अदा न किया कियामत के दिन उस के लिए नमाज़ नूर, हुज्जत और नजात न होगी और वह कियामत के दिन कारून, फिरऔन, हामान और उबय बिन खलफ के साथ होगा।


बाज़ आलिमों का कहना है, उन लोगों के साथ नमाज़ छोड़ने वाला इसलिए उठाया जाएगा कि अगर उस ने अपने माल व असबाब में मशगूलियत की वजह से नमाज़ नहीं पढ़ी तो वह कारून की तरह हो गया और उसी के साथ उठाया जाएगा, अगर मुल्क की मशगूलियत में नमाज़ नहीं पढ़ी तो फ़िरऔन की तरह है और उसी के साथ उठाया जाएगा,अगर विज़ारत की मशगूलियत नमाज़ से मानेअ हुई तो वह हामान की तरह है और उसी के साथ उठेगा,अगर तिजारत की वजह से नमाज़ नहीं पढ़ी तो वह उबय बिन खलफ़ ताजिरे मक्का की तरह है और उसी के साथ उठाया जाएगा।


बज़ाज़ ने हज़रते सअद बिन अबी वक्कास रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत की है कि । मैं ने हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से इस आयत के माना पूछे “जो लोग अपनी नमाज़ों से बेखर हैं" तो आपने फरमाया कि यह वह लोग हैं जो नमाज़ों को उनके वक्तों से मुंवख्खर कर देते हैं" अबू यअला ने सनदे हसन के साथ मुसअब बिन सअद रज़ियल्लाहुअन्हु का कौल अपनी मुस्नद में नक्ल किया है। मुसअब रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं मैं ने अपने वालिद से अर्ज़ की अब्बा जान! आप ने अल्लाह तआला के इस फरमान पर गौर किया है "जो लोग अपनी नमाज़ों से बे खबर हैं" हम में से कौन है जो नहीं भूलता और उस के ख्यालात मुन्तशिर नहीं होते? उन्होंने जवाब दिया इस का मतलब यह नहीं बल्कि इस का मतलब नमाज़ों का वक्त जाया कर देना है।


कजा नमाजों का बयान


वैल के माना सख्त अज़ाब है ! एक कौल यह भी है कि वैल जहन्नम की एक वादी का नाम है, अगर उसमें दुनिया के पहाड़ डाले जायें तो वह भी उसकी सख्त गर्मी की वजह से पिघल जायें और यह वादी उन लोगों का मस्कन है जो नमाज़ों में सुस्ती करते हैं और उन को उन के वक़्तों से मुवख्खर कर के पढ़ते हैं, हाँ अगर वह अल्लाह तआला की तरफ रुजूझ और तौबा करलें और गुज़श्ता आमाल पर शर्मिन्दा होजायें तो और बात है।


ऐ अल्लाह عَزَّوَجَلَّ ! हम तुझसे नमाज़ों को उनके वक़्तों में अदा करने और पाबन्दीसे नमाज़ पढ़ने की तौफीक तलब करते हैं, बेशक ऐ रब! तू मेहरबान, करीम, रऊफ़ और रहीम है।


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